महिला डॉक्टर को देखते ही प्यार में पागल हो गए थे प्रशांत किशोर, डायरेक्ट कर दिया प्रपोज
प्रशांत किशोर ने बिहार के बक्सर में एक पब्लिक स्कूल में पढ़ाई की. स्कूलिंग के बाद प्रशांत किशोर इंजीनियरिंग करने हैदराबाद चले गए. इंजीनियरिंग के बाद प्रशांत किशोर यूएन के एक हेल्थ प्रोग्राम से जुड़ गए. वहीं, उनकी मुलाकात हुई जाह्नवी दास से.
प्रशांत किशोर की आगामी रणनीति किसी को नहीं पता है कि क्या वे राजनीति के मैदान में सीधा आएंगे या नहीं? लेकिन, बिहार की राजनीति में वे एक बार फिर चर्चा में हैं तो उनका सुनहरा अतीत भी लोगों को याद आ रहा है. बता दें कि प्रशांत किशोर देश के जाने माने राजनीतिक रणनीतिकार हैं और पीएम नरेन्द्र मोदी, ममता बनर्जी, जगन मोहन रेड्डी और नीतीश कुमार जैसे नेताओं को सत्ता की कुर्सी पर बैठाने में अहम भूमिका निभा चुके हैं. प्रशांत किशोर के राजनीतिक कौशल से तो लगभग हर कोई वाकिफ है, लेकिन उनके निजी जीवन के बारे में कम लोग ही जानते हैं.
प्रशांत किशोर मूल रूप से बिहार के रहनेवाले हैं. उनका जन्म 20 मार्च 1977 को बिहार में रोहतास जिले के कोनार गांव में हुआ था. बाद में वह सपरिवार बक्सर शिफ्ट हो गए. प्रशांत किशोर के पिता श्रीकांत पांडे बिहार सरकार में डॉक्टर रहे हैं. पिता का निधन वर्ष 2019 में हो चुका है. उनकी मां उत्तर प्रदेश की बलिया की रहने वाली हैं.
जाह्नवी दास पेशे से डॉक्टर हैं. दोनों के बीच की मुलाकात पहले दोस्ती और फिर प्रेम में बदल गई. आगे चलकर प्रशांत किशोर ने जाह्नवी दास से शादी रचा ली. जाह्नवी दास और प्रशांत किशोर के एक बेटे हैं. गैर राजनीतिक पार्टियों में पत्नी जाह्नवी दास भी कभी कभार प्रशांत किशोर के साथ नजर आ जाती हैं.
प्रशांत किशोर जब यूएन में काम कर रहे थे तो उनकी पहली पोस्टिंग की गई आंध्र प्रदेश और हैदराबाद में हुई. वहां काम करने के बाद उन्हें पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के लिए बिहार भेज दिया गया. जब उन्हें बिहार भेजा गया उस समय राबड़ी देवी सीएम थीं.
इसके बाद उन्हें संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में उन्हें काम दिया गया. लेकिन, संयुक्त राज्य अमेरिका में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में काम करने में उन्हें कुछ मजा नहीं आया, इसलिए उन्हें फील्ड वर्क के लिए भेज दिया गया. इसके 6 महीने बाद उन्हें चाड में डिवीजन हेड की पोजिशन दी गई. यहां उन्होंने करीबन 4 साल तक काम किया.
पीके ने संयुक्त राष्ट्र में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ के रूप में काम किया. डॉक्टर का घर होने के बाद भी उन्हें उसमें दिलचस्पी नहीं थी, इसलिए वो भारतीय राजनीति में आ गए. तब किसी को ये भी नहीं पता था कि, राजनीति में आया ये शख्स कौन है.
संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की नौकरी छोड़कर किशोर ने 2011 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की टीम से जुड़े थे. इसके बाद राजनीति में ब्रांडिंग का दौर शुरू हो गया. 2013 में इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमिटी यानी I-PAC बनाई और साल 2014 में किशोर ने सिटीजन फॉर अकाउंटेबल गवर्नेंस (कैग) की स्थापना की थी. जिसे भारत की पहली राजनीतिक एक्शन कमिटी माना जाता है.
प्रशांत किशोर सबसे पहले चर्चा में तब आए थे जब 2014 के आम चुनावों में वह भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार व गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी के लिए चुनावी रणनीतिकार बने थे. जैसे ही 2014 में बीजेपी की सरकार केंद्र में आई और नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने, वैसे ही इसके साथ ही उनकी पहचान भी लोगों के सामने आ गई.
प्रशांत किशोर ने जदयू के साथ अपनी सक्रिय राजनीतिक पारी भी शुरू की थी, लेकिन दो साल में ही वहां से उनका मोहभंग हो गया. बाद में उन्होंने जदयू के उपाध्यक्ष का पद छोड़ दिया.
इसके कुछ महीनों बाद तक वे फिर चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम करते रहे, लेकिन अब वे बिहार की राजनीति को नई दिशा देने के लिए 2 अक्टूबर, 2022 से जन सुराज अभियान पदयात्रा पर हैं. इस बार जिस तरह विधान परिषद चुनाव में उन्होंने चौंकाया है, इससे पीके एक बार फिर चर्चा में आ गए हैं.