घर बेचकर बेटे को MBA कराया, महीने में कमाता है लाखों, बीमारी में छोड़ दिया पिता का साथ
रीवा। एक पिता अपने बच्चों का भविष्य संवारने के लिए अपना सारा जीवन खपा देता है, तो वहीं आज के इस दौर में कुछ औलादें ऐसी भी हैं जो अपने पिता के बुरे वक्त में उनका सहारा बनने के बजाय दर-दर की ठोकर खाने के लिए उन्हें बेसहारा ही छोड़ देते हैं. कुछ ऐसा ही हुआ है एग्रीकल्चर विभाग से रिटायर्ड इस अधिकारी के साथ. इस लाचार पिता का साथ इनके अपनों ने ही छोड़ दिया. गंभीर बीमारी से ग्रसित होने के चलते इलाज के लिए रीवा के संजय गांधी अस्पताल में भर्ती हुए और अब अस्पताल में इलाजरत लाचार बाप ने अस्पताल परिसर को ही अपना ठिकाना बना लिया.
बेदर्द औलाद ने छोड़ा बीमार पिता का साथ
एग्रीकल्चर विभाग से रिटायर्ड शंकर भट्टाचार्य आज दर-दर की ठोकर खाने को मजबूर हैं. क्योंकि वह एक गम्भीर बीमारी से ग्रसित हैं. जिस औलाद को सक्षम बनाने के लिए उन्होंने अपना आशियाना तक बेंच दिया हो, लायक बनने के बाद उसी बेटे और उसकी पत्नी ने वृद्ध पिता का इतना अपमान किया कि आहत वृद्ध एक बोरे में अपने कपड़े भरकर बेंगलोर से रीवा के संजय गांधी अस्पताल आ गया और उसी अस्पताल परिसर पर अपना ठिकाना बना लिया.
MBA की पढ़ाई के लिए बेचा था घर
कृषि विभाग रीवा में फार्म मैनेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए शंकर भट्टाचार्य अपनी आपबीती सुनाते हुए भावुक हो गए और उनकी आंखों में आंसू थे. जिन्होंने अपनी नौकरी के दरम्यान अपनी इकलौती संतान का पालन पोषण राजसी ठाठ-बाठ से किया और एक प्रतिष्ठित संस्थान से एमबीए की शिक्षा दिलाने के लिये रीवा के अमहिया में स्थित अपने सपनों का आशियाना भी बेच दिया. एमबीए की पढ़ाई के बाद प्लेसमेंट के लिये वृद्ध का बेटा बैंगलोर चला गया और यहां सेवानिवृत पिता किराये के मकान में अपना जीवन गुजारने लगे. इसी दौरान वे बीमार हो गए.
दर दर की ठोकर खाने को मजबूर है पिता
गंभीर बीमारी के चलते वृद्ध पिता अपनी हालत को बिगड़ते देख अपने बेटे के पास बैंगलोर चले गए. कुछ दिन रहे फिर बीमार पिता को देखते ही बहू और बेटा दोनों ही उन्हें अपमानित करने लगे. कुछ दिनों तक तो बीमार वृद्ध ने बेटे के सहारे की प्रत्याशा में अपमान का घूंट पिया. लेकिन जब बेटे का दिल नहीं पसीजा, तो बीमार बुजुर्ग रीवा के संजय गांधी अस्पताल आ गए और वहीं अपना ठिकाना बना लिया.
रिटायर्ड अधिकारी शंकर भट्टाचार्य ने मीडिया से बात करते हुए बताया की वह गुप्तांग की एक गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं. वह अपने बेटे के पास बैंगलौर गए थे, लेकिन उनकी बहू और बेटे ने गंभीर बीमारी के चलते उन्हें अपने पास रखने से इनकार कर दिया. बाद में वह बैंगलौर में ही एक किराए का मकान लेकर रहने लगे. कुछ समय बीता और फिर मकान मालिक ने भी उनसे अपना मकान खाली करवा लिया. फिर इसके बाद बीते कुछ समय पूर्व वह रीवा आए और जैन धर्मशाला में रहने लगे. तकलीफ बढ़ती देख संजय गांधी अस्पताल में इलाज कराया और वहीं रह गए
उन्होंने बताया की उनकी इस हालात के बारे में उनके परिवार को जानकारी है लेकिन उन लोगों ने उनसे दूरी बना रखी है. पत्नी जबलपुर में रहती है उसे भी एक मकान खरीदकर दिया है. जबकि एकलौता बेटा है जो की बैंगलोर की एक नामी कंपनी में जोनल मैनेजर के पद पर पदस्थ है, जिसे प्रतिमाह 1 लाख 20 हजार का वेतन मिलता है. वह मूलतः पश्चिम बंगाल के निवासी है. उनकी एक बेटी है जिसका विवाह पूर्व में हो चुका है.