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कोटा जिला कलेक्टर डॉ रविंद्र गोस्वामी ने एजुकेशन सिटी कोटा के स्टूडेंट्स के लिए क्या कहे 

कोटा जिला कलेक्टर डॉ रविंद्र गोस्वामी ने एजुकेशन सिटी कोटा के स्टूडेंट्स के लिए क्या कहे

एजुकेशन सिटी कोटा जहां देश भर से बच्चे मेडिकल और इंजीनियरिंग की कोचिंग करने आते हैं. इनमें से कई बच्चों का सिलेक्शन मेडिकल और इंजीनियरिंग में हो जाता है तो कई स्टूडेंट्स का नहीं. ऐसे ही एक स्टूडेंट है जो 2001 में मेडिकल की कोचिंग करने आए थे लेकिन पहले प्रयास में सफलता हाथ नहीं लगी और कोटा से वापस अपने घर रवाना हो गए. लेकिन दूसरे अटेम्प्ट में सफलता मिली और अच्छी रैंक हासिल कर सरकारी कॉलेज से एमबीबीएस कर अस्पताल में नौकरी भी की. उसके बाद की यूपीएससी की तैयारी की जिसमें ऑल इंडिया 152 रैंक हासिल की और आज वह डॉ रविंद्र गोस्वामी कोटा के जिला कलेक्टर बनकर आए हैं जो कि पहले कोटा में मेडिकल की कोचिंग करने आए

जिला कलेक्टर डॉ रविंद्र गोस्वामी से उन स्टूडेंट्स को सीख लेनी चाहिए जिन्हें सफलता नहीं मिलती और पहले ही बार में वह हार मान जाते हैं. कोटा जिला कलेक्टर डॉ रविंद्र गोस्वामी ने बताया कि 2001 में पीएमटी की कोचिंग करने कोटा में आए थे. कोटा में रहकर मन नहीं लगा तो अपने घर चले गए. घर पर रहकर पढ़ाई की और टेस्ट सीरीज का सहारा लिया. मुझे ऐसा लगता था कि मैं खुद पढ़कर ज्यादा अच्छे से चीजों को समझ सकता हूं. लेकिन कई विद्यार्थी ऐसे होते हैं जिन्हें दूसरे के द्वारा समझाने पर ही समझ में आता है. पीएमटी के पहले अटेम्प्ट में सफलता नहीं मिली, मैंने दोबारा से कोशिश की और सफलता हाथ लगी, मेडिकल में 59 रैंक हासिल कर जयपुर के एसएमएस कॉलेज से एमबीबीएस किया और उसके बाद प्राइवेट अस्पताल में कुछ समय तक नौकरी भी की. इस दौरान यूपीएससी की भी तैयारी की और इसमें भी सिलेक्शन हो गया और ऑल इंडिया 152 रैंक हासिल की.
निराश न होकर प्रयास करते रहें कोटा जिला कलेक्टर डॉ रविंद्र गोस्वामी ने एजुकेशन सिटी कोटा के स्टूडेंट्स के लिए कहा कि यह एक कंपटीशन है ना कि आपकी पढ़ाई का पैरामीटर आपने अच्छी पढ़ाई की है लेकिन किसी और ने आपसे भी ज्यादा मेहनत की है. हो सकता है उसकी क्षमताएं आपसे ज्यादा हो उसमें निराश होने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है. अटेंप्ट कभी खत्म नहीं होते अगर आप डिजर्व करते हैं तो एक्स्ट्रा अटेम्प्ट ले सकते हैं. हमेशा बैकअप प्लान रखें अटेम्प्ट की संख्या लिमिटेड रखें. मैंने पीएमटी के समय अपने दिमाग में यह रखा था कि मैं दो अटेम्प्ट दूंगा अगर नहीं होता है तो उसके बाद नर्सिंग, फार्मेसी वेटरनरी या फिर बीएससी कर लूंगा. ऑप्शन तो हमेशा खुले रहते हैं लेकिन आपको भी अपने दिमाग को खुला रखना चाहिए. जिला कलेक्टर ने बताया कि यह जिंदगी का आखिरी करियर नहीं है करियर आगे और भी है. जो लोग सफलता हासिल नहीं कर पाए वह लोग भी अपना करियर बनाते हैं और जो कर लेते हैं वह भी. इसलिए कभी भी जिंदगी में हार नहीं मानना चाहिए. ऐसा नहीं की परीक्षा में नंबर काम आ गए तो नहीं हो पाएगा बहुत कुछ कर सकते हो बस अपना दिमाग खुला रखें और डिसीजन सही ले.

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Author: pnews

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