Follow Us

सरयू नदी में भगवान श्रीराम ने समाधि लिए , इसमें डुबकी लगाने से धुल जाते हैं पाप

सरयू नदी में भगवान श्रीराम ने समाधि लिए , इसमें डुबकी लगाने से धुल जाते हैं पाप

भारत में नदियों का इतिहास काफी पुराना है। यह प्राचीन काल से मां की तरह हमारा भरण पोषण करती आई हैं। वो नदियां ही हैं, जिनकी वजह से सभ्‍यता और गांव बसे हैं। नदियां न केवल हमारी सकारात्‍मकता में वृद्धि करती हैं , बल्कि इन्हें तो जीवनदायिनी भी माना जाता है। हम भारत की कई नदियों में बारे में बात करते हैं, जिसमें गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा शामिल है। लेकिन सरयू नदी के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। इन दिनों सरयू नदी की चर्चा सब जगह हो रही है।

क्योंकि यह नदी उत्‍तर प्रदेश के अयोध्‍या में स्थित है। हिंदू पौराणिक कथाओं में इस नदी का बहुत महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इसे हिंदू धर्म में सबसे प्रतिष्ठित देवताओं में से एक भगवान राम ने आशीर्वाद दिया था। नदी शहर के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न अंग रही है। हर साल लाखों लोग सरयू नदी के पवित्र जल में स्‍नान करने आते हैं। आइए जानते हैं सरयू नदी का इतिहास और इससे जुड़ी कुछ जरूरी बातों के बारे में।
सरयू नदी को शारदा नदी की सहायक नदी माना जाता है। इसे सरजू के नाम से भी जानते हैं। यह नदी उत्तर प्रदेश की आबादी के लिए पानी का मुख्‍य स्‍त्रोत है। यह नदी हिमालय की तलहटी से निकलते हुए शारदा नदी की सहायक नदी बन जाती है। उत्‍तराखंड और उत्तर प्रदेश के कई पर्यटक स्‍थलों के बीच से गुजरती हुई ये नदी अगले 350 किमी में बहती है। सरयू नदी का उल्‍लेख रामायण और वेद जैसे हिंदू शास्‍त्रों में भी मिलता है।
यह नदी अपने औषधीय गुणों के लिए भी जानी जाती है और माना जाता है कि इसमें उपचार करने की शक्तियां हैं। सरयू नदी में स्नान करने का महत्व प्राचीन हिंदू ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत से मिलता है। इन ग्रंथों के अनुसार, नदी के पवित्र जल में डुबकी लगाने से व्यक्ति को अपनी आत्मा को शुद्ध करने, अपने पापों को धोने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद मिल सकती है। ऐसा माना जाता है कि इस नदी में अपार आध्यात्मिक ऊर्जा है और इसमें डूबकर कोई भी व्यक्ति परमात्मा से जुड़ सकता है और आंतरिक शांति प्राप्त कर सकता है।
पुराणों एवं रामायण के अनुसार सरयू नदी का आगमन त्रेता युग से पूर्व बताया गया है। आज भी यह नदी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। बता दें कि संत और तपस्‍वी सरयू नदी की पूजा करते हैं।
भगवान श्रीराम ने सरयू नदी में ही जल समाधि ली थी और उन्होंने अपनी लीला भी यहीं समाप्त की थी। जिसके कारण भगवान भोलेनाथ उनपर बहुत क्रोधित हुए थे और उन्होंने सरयू नदी को श्राप दिया की तुम्हारा जल मंदिर में चढ़ाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। साथ ही किसी भी पूजा-पाठ में इस जल का प्रयोग नहीं किया जाएगा
पुराणों के अनुसार, सरयू नदी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई हैं। प्राचीन काल में शंखासुर दैत्य ने वेदों को चुराकर समुद्र में डाल दिया और खुद भी वहीं छिप गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर दैत्य का वध कर दिया। फिर भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को वेद सौंपकर अपना वास्तविक रूप धारण किया

पौराणिक उल्लेख

अयोध्या से कुछ दूर सरयू के तट पर घना जंगल स्थित था, जहां अयोध्या नरेश आखेट के लिए जाया करते थे। दशरथ ने इसी वन में आखेट के समय भूल से श्रवण कुमार का, जो सरयू से अपने अंधे माता-पिता के लिए जल लेने के लिए आया था, बध कर दिया था-

pnews
Author: pnews

Leave a Comment