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जल जीवन हरियाली को बचाने के लिए सामुहिक प्रयास की जरूरत है, तभी हम प्रकृति को सुरक्षित और संरक्षित कर सकतें हैं*

*जल जीवन हरियाली को बचाने के लिए सामुहिक प्रयास की जरूरत है, तभी हम प्रकृति को सुरक्षित और संरक्षित कर सकतें हैं*

 

समस्तीपुर : प्रकृति नें बहुत कुछ दिया है जन जीवन को सरलता से ज़ीने के लिए। लेकिन आज हम अपनीं प्रकृति को हीं तहस – नहस किए जा रहें हैं। धरती का बढ़ता हुआ तापमान, नदियों में पानी का कम होना, पृथ्वी पर जनसंख्या के मुताबिक पौधों का ना होना, यह जीता जागता उदाहरण है। पर्याप्त पेड़ – पौधे नहीं तो जीवन हीं नहीं रहेगा तो क्या होगा जरा सोचिए। बड़ी बड़ी अट्टालिकाएं, बड़े – बड़े घर, बड़े – बड़े अपार्टमेंट, अपार्टमेंट में लगा हुआ एसी, महंगी कारें, शान – शौकत का क्या होगा। हमारे देश को अकेले 500 करोड़ पौधे की आवश्यकता है। एक पौधे को तैयार होने में कम से कम 8 से 10 साल लगते हैं। अगर आज भारत में हमारे जनसंख्या के आलोक में पौधे नहीं लगेंगे तो शायद हमारा अस्तित्व हीं खत्म हो जाएगा। देश में चुनाव के नाम पर अरबों खरबों रुपए खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन देश में पौधे लगाने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। जो भी सरकारी प्रयास वन विभाग या मनरेगा अंतर्गत हो रहा है, वह तो सिर्फ और सिर्फ कागज पर पेड़ – पौधे लगा कर जन प्रतिनिधियों और सरकार के आला अधिकारियों द्वारा देश के ख़ज़ाने को लुटने का एक मकसद है। मेरे देशवासियों आज हमनें अपनें परंपरागत जल स्रोतों को बर्बाद कर दिया है। ना पोखर रहा, न कुआं, ना तालाब। अविरल बहनें वाली नदियों में हमारे देश के विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के रहनुमाओं नें अवैध अट्टालिका खड़ा कर रखा है, अतिक्रमण कर रखा है नदियों के नहरों को। नमामि गंगा परियोजना तो लूट का एक जरिया है। नदियों में गाद और शिल्ट भरनें से जल संग्रहण क्षमता घटा है। हमारी धरती मां का दोहन हो रहा है, हम देख रहे हैं, लेकिन चुप हैं। देश में प्लास्टिक का प्रयोग कर हम जल स्रोतों को प्लास्टिक के कचरों से भरकर बर्बाद कर दिए हैं। पोखर तालाब का अतिक्रमण कर घर बना डालें हैं। पोखर तालाब के किनारे हमारे पूर्वज बड़े – बड़े फलों के पौधे छोड़ गए थे। लेकिन हम उन पौधों को भी काट कर ले गए और उसके बदले एक भी पौधा नहीं लगा पाए। हमारे पूर्वजों नें स्वच्छ वायु देने के लिए पीपल, नीम, बरगद, आम, महुआ, जामुन इत्यादि पेड़ लगा कर हम लोगों के लिए छोड़ गए और हमनें क्या किया उन पेड़ों को काटकर घरों में फर्नीचर बना डालें। जरा सोचिए हम अपनें बच्चों के लिए क्या छोड़ कर जा रहे हैं। प्लास्टिक का कचरों का ढेर, कचरों से भरा हुआ कुआं, पोखर एवं तालाब, दूषित पानी, सुखी नदियां, पारिवारिक एवं सामाजिक कलह, बरसों से चल रहे न्यायालयों में केस का तारीख, जात-पात के अनवरत चलनें वाले झगड़े, रिश्ते नातों में दरार, तनाव भरा जीवन, मानसिक बीमारी, स्कूल में किताबों का बोझ, बिना पानी का कुआं इत्यादि। बन्धु कोई बाहर से आकर हमारी आपकी रक्षा नहीं करेगा। हमें अपनीं रक्षा खुद करना है और आगे बढ़ना है, आइए हम सब मिलकर विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अधिक से अधिक पौधे लगाएं और जल, जीवन, हरियाली को बचाएं । साथ ही घरों में होने वाले त्योहारों पर पौधे लगाने का संकल्प लें। तभी हमारा अस्तित्व बचेगा। अपनें साथ – साथ धरती के सभी जीव जंतुओं की रक्षा के लिए आगे आएं।

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Author: pnews

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