कौन थे देवरहा बाबा, सरयू किनारे पैर के अंगूठे से देते थे आशीर्वाद, अटल से इंदिरा तक रहे शिष्य
देवरिया में देवरहा बाबा का बड़ा आश्रम है, जहां भी उनके भक्त प्रशंसक आते हैं और उनके धार्मिक आध्यात्मिक कार्यों की कहानी सुनकर हैरत में पड़ जाते हैं.
देवरहा बाबा के समाधि लिए हुए भले ही दशकों हो गए हों, लेकिन आज भी उनके भक्त उन्हें याद करते हैं. देवरहा बाबा उन सिद्ध पुरुष और दिव्य संतों में एक थे, जिन्होंने कभी अपनी चमत्कारिक शक्तियों या तप-ज्ञान को लेकर कोई दावा नहीं किया, लेकिन उनके अनुयायी उनकी दैवीय शक्तियों का हमेशा बखान करते थे. कर्मयोगी, ध्यान-साधना की शक्ति के जरिये वो हर किसी के मन की बात जान लेते थे. अष्टांग योग में देवरहा बाबा पारंगत थे. उन्होंने शिष्यों को योग साधना में सबसे कठिन हठ योग भी सिखाया. ध्यान योग, लय योग, नाद योग, प्राणायाम, ध्यान, त्राटक, धारणा, समाधि में वो सिद्ध थे.
देवरहा बाबा का जन्म कहां हुआ
देवरहा बाबा कहां पैदा हुए (Devraha Baba Birthplace) और उनकी आयु को लेकर कहीं कोई ठोस उल्लेख नहीं मिलता, लेकिन कहा तो यहां तक जाता है कि अपनी दैवीय शक्तियों और साधना के बलबूते वो 250 से पांच सालों तक जीवित रहे. देवरहा बाबा का निवास स्थान देवरिया जिले में माना जाता है और इसी से उनका नाम पड़ा. देवरिया जिले के नाथ नदौली गांव के लार रोड निवासी थी.
लंबी जटाएं और दुबला पतला शरीर
सादगी और सहजता के प्रतीक देवरहा बाबा की काया एकदम दुबली पतली की थी. वो भयानक से भयानक ठंड में भी शरीर के ऊपरी हिस्से में वस्त्र धारण नहीं करते थे. लंबी जटाएं, जनेऊ, मृग छाल ही उनकी पहचान था. सरयू नदी किनारे मचान पर कुटिया ही उनका ठिकाना थी. मथुरा वृंदावन में भी यमुना किनारे चार साल तक उनका मचान लगा रहा.
मचान ही पहचान
बाबा के शिष्यों में से एक मार्कंडेय महाराज के मुताबिक, 12 फीट ऊंचे लकड़ी के मचान से देवरहा बाबा सुबह के वक्त दैनिक नित्य क्रिया और स्नान के लिए ही उतरते थे. कहा जाता है कि हिमालय में काफी लंबी घोर तपस्या के बाद वो घूमते फिरते यहां देवरिया पहुंचे. यही सलेमपुर से डेढ़ किमी दूर सरयू किनारे मचान बनाकर धर्म आध्यात्म में लीन हो गए. अन्न के बिना दूध और शहद पीकर वो लंबे समय तक रहते थे श्रीफल रस उन्हें प्रिय था.
सरयू में भयानक बाढ़ भी उनके मचान से स्पर्श करके वापस उतरने लगती थी. भक्तों द्वारा दावा किया जाता है कि वो पानी में न डूबने की चमत्कारिक ताकत (Devraha Baba Story) भी थी. मथुरा वृंदावन में यमुना नदी पर देवरहा बाबा आधे घंटे तक बिना सांस लिए पानी में समाधि लेते थे.पशुओं की बोली-भाषा भी वो समझ लेते थे और खूंखार जंगली जानवर भी वश में करके पालतू पशुओं की तरह उनके पास बैठ जाते थे. उनकी स्मृति बहुत तेज थी.
बड़ी हस्तियां उनकी अनुयायी थीं
देवरहा बाबा के अनुयायियों में बड़ी हस्तियां शामिल थीं. मदन मोहन मालवीय, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू, अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव जैसी बड़ी राजनीतिक हस्तियां उनके आगे मत्था टेकती थीं. ब्रिटिश महाराजा जार्ज पंचम भी उनके आश्रम में एक बार दर्शन करने आए थे.
देवरहा बाबा का कल्पवास
देवरहा बाबा वैसे तो सरयू किनारे ही धुनी रमाए रहते थे, लेकिन माघ मेले में कल्पवास के दौरान वो प्रयागराज जरूर जाते थे. महाकुंभ, अर्धकुंभ में भी वो शामिल होते थे. वहां भी उनका आशीर्वाद लेने को भारी भीड़ उमड़ती थी.
इंदिरा गांधी की किस्मत बदली
इमरजेंसी के बाद का आम चुनाव इंदिरा गांधी बुरी तरह हार चुकी थीं. निराशा-मायूसी के बीच देवरहा बाबा की शरण में वो पहुंचीं. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी को अंगूठे की जगह देवरहा बाबा ने हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया. इंदिरा ने हाथ के उसी पंजे को अपना चुनाव चिन्ह बनाया और दो साल बाद 1980 में प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा प्रधानमंत्री पद पहुंचीं.
देवरहा बाबा का आश्रम कहां है
देवरिया जिले से करीब 35 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे उनका आश्रम है. देवसिया गांव में देवरहा बाबा का ये बड़ा आश्रम है, जिसका नवीनीकरण भी किया जा रहा है. लार रोड और सलेमपुर सड़क मार्ग से बस-कार से देवरहा बाबा आश्रम आ सकते हैं.
राम मंदिर की भविष्यवाणी
कुंभ मेले के दौरान बाबा का गंगा-यमुना के तट पर मचान लगता था.दोनों किनारों पर वो एक-एक महीने प्रवास करते थे. संत देवराहा बाबा ने फरवरी 1989 में प्रयागराज कुंभ में राम मंदिर आंदोलन को सहयोग का ऐलान किया. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की भविष्यवाणी भी कर दी. राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिन्दू परिषद के शिलान्यास की तारीख 9 नवंबर 1989 भी उनके निर्देश पर तय हुई. तब प्रधानमंत्री राजीव गांधी, विदेश मंत्री नटवर सिंह, गृह मंत्री बूटा सिंह और सीएम नारायण दत्त तिवारी भी उनकी शरण में पहुंचे थे. 19 जून 1990 को देवरहा बाबा ब्रह्मलीन हो गए.