भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था ,कार्यपालिका को विकलांग बनाने को अग्रसर है ।
वरिष्ठ पत्रकार चंदन कुमार सिंह
लोकतांत्रिक व्यवस्था के मुखिया प्रधान मंत्री हो या मुख्यमंत्री दोनों पद पर बिराजमान माननीय, लोकतंत्र की आर में लोकतांत्रिक व्यवस्था को नष्ट करने पर तुले हुए हैं।क्या यही राज धर्म है? राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री एवं प्रांतीय स्तर पर मुख्यमंत्री के द्वारा लोक कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार प्रसार के लिए बड़े पैमाने पर विज्ञापन निकाला जाता हैं ।आवश्यक भी है कि सरकारी लोक कल्याणकारी योजनाओं की जानकारी आम जनता तक हो । इसके लिए विभाग के साथ साथ समाचार पत्र समेत अन्य संनसाधन भी मौजूद हैं । बाबजूद इसके जहाँ केन्द्र सरकार रथयात्रा निकाल कर केन्द्र की योजनाओं को जनता तक पहुँचाने का निर्देश जिला कलक्टर को दिया है ।इतना ही नहीं रेलवे स्टेशन , पैट्रोल पम्प के साथ साथ अन्य संस्थानों पर प्रचार प्रसार हो रहा है ।हद तो यह हो गया कि संस्थानों के प्रमुख को सेल्फि भी लिंक पर डालना है ।राज्य सरकार क्यों पीछे रहती जब वह बिरोधी गुट से तालुक रखती हैं ? राज्य सरकार जन संवाद कार्य क्रम चला कर राज्य सरकार की योजनाओं की जानकारी जन जन पहुँचाने का कार्य क्रम चला रही हैं ।जिसमें जिला स्तरीय अधिकारियों को इस कार्य में लगा दिया है। यह क्या हो रहा है ? लोकतंत्र की आर में चौथा स्तम्भ तो नष्ट होने के कगार पर है ही अब कार्यपालिका पर भी संकट के बादल मंडराने लगा है । इस प्रस्थिति में जनता को जन आन्दोलन ही एक रास्ता बनता है ।न्यायपालिका करे तो क्या ? उन्हें तो पहले ही आँखों पर पट्टी लगा दिया गया है । नैतिकता को ताक पर रखकर विधायिका कार्य कर रही हैं ।सरकारी राशि एवं सरकारी तंत्र को कठपुतलि बना दिया गया है ।राष्ट्रीय गौरब भरतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारीयों के संगठन को भी ध्यान देना चाहिए ।